मगर झोपड़ी खड़ी नहीं

रात में ही आ गए थे मगर सुबह हुई नहीं 
मकान की तलाश मगर झोपड़ी खड़ी नहीं |
काश , किस कदर मुंहतकी निगाह से देखता रहूँ 
क्यों निर्झर पंखुरियों  में गंदगी तो सनी नहीं |
पुरलुत्फ़ सरगोशियों की टोह में चला था जुगनू 
कहीं सायाफगन न हुआ , कहीं रोशनी नहीं |
आ बतलाऊं तुझे वह बात आदम की आज 
कभी पोशीदा थी जो शै मगर अनजाने में नहीं |
मैं परवाह नहीं करता इन दुन्दभियों का मगर 
वह जांनिसार ' अनथक ' किसी दीवाने में नहीं |
- राम पाल श्रीवास्तव ' अनथक '    
Share on Google Plus

About Unknown

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment