जब मैं भूला रे भाई, मेरे सत गुरु जुगत लखाई।
किरिया करम अचार मैं छाड़ा, छाड़ा तीरथ नहाना।
सगरी दुनिया भई सयानी, मैं ही एक बौराना।।
ना मैं जानू सेवा बंदगी, ना मैं घंट बजाई।
ना मैं मूरत धरि सिंहासन, ना मैं पहुप चढ़ाई।।
ना हरि रीझै जब तप कीन्हे, ना काया के जारे।
ना हरि रीझै धोति छाड़े, ना पाँचों के मारे।।
दाया रखि धरम को पाले, जगसूँ रहै उदासी।
अपना सा जिव सबको जाने, ताहि मिले अविनासी।।
सहे कुसबद बाद को त्यागे, छाड़े गरब गुमाना।
सत्यनाम ताहि को मिलिहै, कहे कबीर दिवाना।।
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