बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को
बेचता यूँ ही नहीं आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को
सब्र की एक हद भी होती है तवज्जो दीजिये
गर्म रखें कब तलक नारों से दस्तरखान को
शबनमी होंठो की गर्मी न दे पायेगी सुकून
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को |
- रामनाथ सिंह ' अदम गोंडवी '
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